Sunday, September 20, 2009

Caste, creed, colour and community

Some of my colleagues and friends have advised me not to get involved in talking the caste issue, for this might stir a hornet’s nest and I might be inviting troubles.

There was also a point that Brahmin journalists gathering was not the first of its kind. Earlier, journalists belonging to Jain community were gathered at Bhopal itself.

There was some misunderstanding too. One of my friends (not a journalist but a government officer) belonging to Sindhi community appreciated my writing but wanted to know if I was against his social gathering also which was based on Sindhi language.

My submission is I am never against gathering of any community members and I have clearly explained in my piece in the very beginning that social gathering of a particular caste members is not a new phenomenon. I was only pained to know about gathering of journalists in the name of a caste.

I am sure none of journalists would disagree with me that whenever he or she meets another journalist he or she doesn’t have the caste feeling in his/her mind.

Even otherwise, a journalist is simply a journalist and doesn’t belong to a caste and creed in the same manner as a Judge is a judge and he or she doesn’t belong to any caste. A judge doesn’t entertain a case or delivers a judgment in any case on the ground of caste and creed of the complainant/petitioner.

A journalist in a true sense a judge who has to deals with all the sections of society at the same time. If he nurture the feeling of his particular caste in his mind there is a danger of his decision on the news event being influenced by his thinking.

A journalist certainly comes from a caste and community but the moment he holds pen his hand to discharge his duties as a journalist and serve the society he ceases to be a member of a particular caste and community especially when he is discharging his journalistic duties.

However, this doesn’t mean that he is debarred from carrying on his social/domestic rituals/practices at home or in his community.

Now coming to senior journalist Prabhash Joshi’s comments. The controversy arose over his words in an interview he gave to a web portal raviwar.com.

In the interview, he speaks on “Kaushal wali kaum” (community with skills). He says there have been and are great cricketers from Muslim community in Indian Cricket team. They include Azharuddin, Pathan brothers, Mohd Kaif. He also speaks highly of Mushtaq Ali.

In Joshi’s view Muslims are a community which is known for its skills of hands which it uses in weaving, pottery etc. Since they have developed their skills of hands traditionally they are best suited to play cricket which also requires skill and flexibility of hands.

As per Joshi Silicon Valley in America has direct links with reservation in South India. Due to reservation in South ‘The Brahmins, of higher caste, went to America. Today, every IT company in Silicon Valley has an Indian as its president or chairman or vice-chairman or secretary. Why? Because Brahmins know well with his training how to handle the essential things…….Brahmins have the training right from the childhood how to make real the unexplained, non-material and unreal things. That’s why IT becomes successful in America and they become successful over there.

“In our society there are different people with different skills. Rajput rules well because they have been ruling traditionally.”

Prabhash Joshi explains further. “Suppose Sachin Tendulkar and Vinod Kambli are playing. If Sachin gets out nobody would believe that Kambli could save the match because Kambli’s character and his attitude is not of arranging the things and taking it to a logical conclusion. For a win you need a man who has the power of gathering (dharan shakti wala).”

“Look who are the best leaders in our society- Jawaharlal Nehru a Brahmin, Indira Gandhi a Brahmin, Atal Bihari Vajpayee a Brahmin, Narasimha Rao a Brahmin, Rajiv Gandhi a Brahmin.” Why? Because everything has to be handled well, hence they can make compromises also.

Understandably, if a section of people have praised Prabhash Joshi’s thoughts there is a lot of criticism also. The comments are there on the same site below the interview piece.

There are several comments and questions “Prabhashji ye sawal mangte hain” on blog.deshkaal.com.

Following are some comments and questions against Mr Joshi's statements I found on blog.deshkaal.com

ख़बर भी नज़र भी, नज़रिया, मीडिया मंडी »
वर्चुअल गांधी का पत्र, प्रभाष जोशी के नाम
[23 Aug 2009 | 4 Comments | ]

(वर्चुअल) गांधी जी ♦ माफ करना मित्रो, ब्राह्मण नहीं हूं, फिर भी वक्तव्य देने चला आया। दरअसल एक ज़रुरी सच्चाई बताने आया हूं कि इस देश को मैंने नहीं, नाथूराम ने आज़ाद कराया था। आपको तो मालूम है कि नाथूराम ब्राहमण था और उसकी धारण-क्षमता की गोली मेरे सीने में मलाई की तरह घुल गयी थी। गुरुदेव प्रभाष जोशी जी से कहना आपका चेला गांधी आया था। कमज़ोर धारण-क्षमता की वजह से ज्यादा देर रुक नहीं पाया। अच्छा मित्रो, चलता हूं। पाचक-क्षमता भी जवाब दे रही है। अभी रास्ते में गुरु गौडसे की समाघि पर मत्था भी टेकना है। सी यू बेटा, हां।
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प्रभाष जी की मति भ्रष्‍ट हो गयी है, आप सब रहम करें
[23 Aug 2009 | 53 Comments | ]

strong>विभा रानी ♦ सरकार भी साठ साल की उम्र के बाद लोगों को सेवा से निवृत्त कर देती है। मगर हम हैं कि प्रभाष जोशी जैसे लोगों की उम्र पर रहम ही नहीं करना चाहते हैं। क्या हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में नये लोग आज के आइकन बनने की कूवत नहीं रखते या हमारे भीतर इतनी भी अक्ल नहीं है कि ऐसे लोगों की बातों को एक बूढ़े का प्रलाप मान कर उसे या तो उपेक्षित कर दें या उसे भूल जाएं। याद रखें कि ये सब सेलेब्रेटी हैं और इन्हें अपने को ख़बर में बनाये रखना आता है और इसके लिए ये हर चाल चलेंगे ही चलेंगे। हम क्यों ऐसे शिकारियों के जाल में फंसते हैं, यह रटते हुए कि “शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ से उसमें फंसना नहीं।”
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ओह, इतना बड़ा पत्रकार और इतनी मूर्खतापूर्ण बातें?
[22 Aug 2009 | 15 Comments | ]

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी ♦सूचना तकनीक के कि‍सी भी बुनि‍यादी अनुसंधान के क्षेत्र में भारत से लेकर अमेरि‍का तक कि‍सी भी ब्राह्मण का कोई पेटेंट नहीं है। आज तक कि‍सी भी भारतीय को सूचना तकनीक के कि‍सी भी बुनि‍यादी अनुसंधान का मुखि‍या पद अमेरि‍का की सि‍लीकॉन वैली में नहीं दि‍या गया है, सि‍लीकॉन वैली में बुनि‍यादी अनुसंधान में आज भी गोरों और अमेरि‍की मूल के गोरों का पेटेंट है। आज इस संबंध में सारे आंकड़े आसानी से वेब पर उपलब्‍ध हैं। प्रभाष जी को चुनौती है कि‍ वे ऐसे पांच ब्राह्मणों के नाम बताएं जि‍न्‍होंने सूचना तकनीक के क्षेत्र में बुनि‍यादी अनुसंधान का काम कि‍या हो
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उनको क्रिकेट के मैदान में अधूरा भारत क्यों दिखता है?
[21 Aug 2009 | 18 Comments | ]

दिलीप मंडल ♦ विनोद कांबली का टीम से बाहर होना क्या किसी नस्लभेदी या जातिवादी साज़‍िश की वजह से हुआ था? एक टीवी कार्यक्रम में इस ओर संकेत कर विनोद कांबली ने बेहद संवेदनशील मुद्दा छेड़ दिया। लेकिन एक व्यक्ति के टीम में होने या न होने या निकाले जाने से बड़ा एक मुद्दा है, जिस पर बात होनी चाहिए। वो है क्रिकेट के मैदान में पूरे देश की इमेज नज़र न आना। आखिर ये शायद अकेला टीम स्पोर्ट है, जिसकी भारतीय टीम में नॉर्थ ईस्ट से कोई नहीं होता, कोई आदिवासी नहीं होता, कोई दलित नहीं होता, पिछड़े जाति समूहों के खिलाड़ी आम तौर पर नदारद होते हैं। यानी तीन चौथाई से ज्यादा हिंदुस्तान भारतीय क्रिकेट टीम में नज़र ही नहीं आता।
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प्रभाषजी के विचार मानवताविरोधी हैं
[20 Aug 2009 | 30 Comments | ]

प्रभाष जोशी ♦ प्रभाष जोशी ब्राह्मणवादी हैं, ये आप लोगों को आज पता चल रहा है? आपके इस भोलेपन के क्या कहने? अस्सी के दशक के अंत में जनसत्ता में जब लगभग 400 संपादकीयकर्मी थे, तो उनमें सिर्फ एक दलित और मुसलमान एक भी नहीं था। ये संयोग था या साज़‍िश। प्रभाष जोशी के नायकों को देखें – विष्णु चिंचालकर, कुमार गंधर्व, तेंडुलकर, नरसिंह राव, अनुपम मिश्र, राहुल बारपुते… इन्हीं सब की तारीफ में तो वो कागद कारे करते हैं। पूरी लिस्ट पढ़ जाइए। प्रभाष जोशी के चेले बताएं कि उनके कितने हीरो अब्राह्मण, अवर्ण, मुसलमान और महिलाएं हैं?
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क्‍यों आ रही है हमारे हीरो की आत्‍मा से ब्राह्मण की बू?
[20 Aug 2009 | 13 Comments | ]

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blog.deshkaal.com
In a controvarcial interview senior Journalist Prabhash Joshi has praised Brahmins and Brahminism and also justified Sati pratha on the grounds of Hindu traditions. www.deshkaal.com has asked 15 questions to mr. joshi in this regard.

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने रविवार.कॉम को दिए इंटरव्यू में जाति और परंपराओं के संबंध में कई ऐसी बातें कही हैं जिनसे उनके प्रशंसक स्तब्ध, नाराज़ और दुखी हैं। वेबसाइट में प्रकाशित इस इंटरव्यू से ऐसा ध्वनित होता है मानो प्रभाष जोशी घोर ब्राम्हणवादी और दकियानूस किस्म के व्यक्ति हैं। वे जाति के आधार पर प्रतिभा और कौशल का विश्लेषण करते हैं और ब्राम्हणों और ब्राम्हणवाद को महिमामंडित करते नज़र आते हैं। यहाँ तक कि सती-प्रथा के पक्ष में दिए तर्कों को दोहराकर उन्होंने बरसों पहले के विवाद को भी पुनर्जीवित कर दिया है। प्रभाषजी ने ये सब क्यों कहा? उनसे चूक हो गई या वास्तव में उनकी मानसिक बनावट ही ऐसी है जिसमें श्रेष्ठताबोध से ग्रस्त एक परंपरावादी ब्राम्हण बैठा हुआ है? वजह चाहे जो भी हो, मगर इस साक्षात्कार ने उनकी विचारधारा, व्यक्तित्व और कथनी-करनी को लेकर बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए हैं और जो स्पष्टीकरण की माँग करते हैं। हम देशकाल की तरफ से कुछ सवाल यहां दे रहे हैं और चाहते हैं कि इस प्रश्नावली में आप भी अपने सवाल जोड़ें। इसके बाद एक पूरा प्रश्नपत्र प्रभाषजी को सौंपा जाए और उनसे जवाब माँगें जाएं।

सवाल-1-रक्त और बीज के आधार पर व्यक्ति या समाज की श्रेष्ठता का निर्धारण करना नस्लवाद है, सांप्रदायिकता है। इसके लिए आधार चाहे धर्म को बनाया जाए या जाति को, कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। फिर ऐसा क्यों है कि एक तरफ तो आप हिंदू सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ झंडा लेकर खड़े दिखाई पड़ते हैं मगर दूसरी तरफ ब्राम्हणवादी नस्लवाद को सही ठहराते दिखते हैं?

सवाल-2-आप गाँधीवादी हैं। गाँधीजी बनिए थे। वे न जन्म से ब्राम्हण थे न कर्म से। जब आप सफलता और कौशलता को ब्राम्हणों की बपौती बताते हैं और नेहरू, इंदिरा, राजीव, नरसिंहराव, वाजपेयी आदि के उदाहरण देते हैं तो गाँधी को क्यों भूल जाते हैं? आपका ब्राम्हणवाद गाँधी तक को क्यों खारिज़ कर देता है? राजीव गाँधी तो फिरोज़ अली के बेटे थे। उनका रक्त ब्राम्हण का नहीं था और इस लिहाज़ से राहुल-प्रियंका भी ब्राम्हण नहीं हैं?

सवाल-3-आपने जातीय श्रेष्ठता साबित करने के लिए क्रिकेट और तेंदुलकर को चुना है। क्या वजह है कि आप तेंदुलकर की तुलना अपेक्षाकृत कम सफल खिलाड़ी विनोद कांबली से( हालाँकि विनोद काँबली के आँकड़े उतने बुरे भी नहीं हैं। बहुत सारे ब्राम्हण खिलाड़ियों के मुकाबले उनका प्रदर्शन कहीं बेहतर रहा है और अगर उन्हें पर्याप्त मौके मिलते तो पता नहीं वे क्या करते) करते हैं मगर क्यों नहीं आपको कपिलदेव, महेंद्र सिंह धोनी या दूसरे ग़ैर ब्राम्हण सफल खिलाड़ी दिखाई पड़ते? दूसरे देशों में तो ब्राम्हण नहीं होते, तब आप डॉन ब्रेडमैन, गैरी सोबर्स जैसे महान खिलाड़ियों की श्रेष्ठता का विश्लेषण किस आधार पर करेंगे? उनके जातीय मूल में जाकर कैसे उनके बीज की महिमा सिद्ध करेंगे?

सवाल न4-तेंदुलकर अपने पिता की अकेली संतान नहीं हैं। बाक़ी संततियों के बीज़ों में क्या कमी थी जो वे ब्राम्हण होते हुए भी तेंदुलकर की तरह सक्षम और सफल नहीं हुए? इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए सवाल बनता है कि सारे ब्राम्हणों की संतान तेंदुलकर की तरह तेजस्वी, प्रतिभावान वगैरा क्यों नहीं है?

सवाल-5-आपका ध्यान दूसरे खेलों की तरफ क्यों नहीं जाता? आप ज़रा बताएंगे कि हॉकी में कितने ब्राम्हण सफल हुए हैं। ध्यानचंद ब्राम्हण नहीं थे और न ही बाबू के़.डी.सिंह। भारत और भी खेल खेलता है जिनमें दिमाग और कलात्मकता की ज़रूरत पड़ती है। ज़रा उनका भी हिसाब लें कि वहाँ ब्राम्हणों की स्थिति क्या है?

सवाल 6-क्या परिवेश और साधन-सुविधाओं से भी शक्तिशाली फैक्टर रक्त एवं बीज होते हैं? आपको लगता है कि सिलिकान वैली दक्षिण के ब्राम्हणों की वजह से चल रही है? आरक्षण की वजह से ब्राम्हणों को दूसरे रास्ते ढूँढ़ने पड़े और उन्होंने वहाँ की राह पकड़ ली। आपने ऐसा सुना है या फिर आपने तथ्यों की जाँच करके ऐसा कहा है? तथ्य ये है कि सिलिकान वैली में मौजूद कुल भारतीय आबादी का एक छोटा सा ही हिस्सा दक्षिण के ब्राम्हणों का है।

सवाल 7-आपने ये भी तर्क दिया है कि ब्राम्हणों में ही ऐसे काम करने की योग्यता होती है इसलिए दक्षिण के ब्राम्हण सिलिकान वैली में छा गए। क्या ये सच नहीं है कि विज्ञान से जुड़ी ज़्यादातर परियोजनाएं दक्षिण भारत में लगाई गईं और वहाँ इसके लिए एक वातावरण बना? चूँकि शिक्षा के क्षेत्र में पीढ़ियों से ब्राम्हण हावी थे इसलिए उन्होंने इसका लाभ भी उठाया। उनके विज्ञान के क्षेत्र में और सिलिकान वैली में सफल होने की मूल वजह ये है कि उनका ब्राम्हण होना?

सवाल-8-अगर ब्राम्हण में ऐसी कोई जन्मजात योग्यता होती है तो उत्तर भारत के ब्राम्हणों को क्या हुआ? उनकी ये योग्यता क्यों कुंद हो गई? क्या उन्हें भी आरक्षण का कोड़ा लगेगा तभी उनकी मेधा जागेगी?

सवाल-9-ब्राम्हणों ने संस्कार में कुछ दुर्गुण भी प्राप्त किए होंगे? आप उनका ज़िक्र क्यों नहीं करते? उनकी दलित और स्त्री विरोधी भूमिका के बारे में आप खामोश क्यों हैं? सांमतवाद को पालने-पोसने में पुरोहित वर्ग ने आम जनता के ख़िलाफ़ धर्म और वर्ण व्यवस्था के नाम पर कितने अत्याचार और षड़यंत्र किए क्या आप जानते नहीं हैं?

सवाल-10-आपने कहा है कि परंपरा और अभ्यास से हुनर मिलते हैं और विभिन्न जातियां इसीलिए कुछ ख़ास चीज़ों में निपुण होती हैं। क्या इस तर्क के आधार पर माना जाए कि तमाम जातियों को अपने पारंपरिक पेशों में सीमित रहना चाहिए(ताकि ब्राम्हणों और सवर्णों का वर्चस्व बना रहे)? कहीं परंपरा और संस्कार से हासिल कौशल को रेखांकित करन के पीछे आपकी ये धारणा तो नहीं है कि विभिन्न वर्णों के लिए जो कर्म निर्धारित किए गए हैं उन्हें वही करने चाहिए? ब्राम्हण ज्ञान बाँटता रहे और निचली जातियाँ उनका मैला ढोती रहें, क्योंकि इनको इसी की ट्रेनिंग मिली है?

सवाल-11-ये सही है कि आनुवांशिकी के सिद्धांत के हिसाब से परंपरा और संस्कार से वंशजों को बहुत कुछ मिलता है। मगर क्या इसे एक जाति विशेष पर समान रूप से लागू कर देना ठीक है? न तो सभी ब्राम्हण एक जैसे होते हैं और न ही ग़ैर ब्राम्हण, फिर एक ही लाठी से सबको हाँकना क्या ठीक है?

सवाल-12-इंटरव्यू में आपने जिस तरह से ब्राम्हणों का महिमामंडन किया है उससे लोगों को ये संदेह होना स्वाभाविक है कि आप लोगों को चुनते वक्त जाति के भी कुछ अंक रखते होंगे। कुछ ने तो अपनी प्रतिक्रियाओं में इस बारे में सीधे आरोप भी लगाए हैं। इस बारे में आप क्या कहेंगे?

सवाल-13-अगर राजेंद्र यादव या उदयप्रकाश या और भी बहुत से लेखक और दूसरे बहुत से लोग कहते हैं कि ब्राम्हणों ने तमाम साहित्य, संस्कृति, कला, शिक्षा आदि के संस्थानों पर कब्ज़ा कर रखा है और वे जातीय आधार पर काम करते हैं तो क्या ग़लत कहते हैं?

सवाल-14-सती प्रथा को आपने अपनी परंपरा के आधार पर सही ठहराने की कोशिश की है। इसे पूरब-पश्चिम के प्रचलित विमर्श से हटकर मानवीय आधार पर सोचने पर आप किस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं (वैसे ये परंपरा मुगलों के आने के बाद ही नहीं शुरू हुई, जैसा कि आपने कहा है)? महाभारत में पांडु की मृत्यु के बाद उनकी एक पत्नी माद्री के सती होने का ज़िक्र है)।

सवाल-15-अगर परंपरा के नाम पर हम चीज़ों को सही-गलत मानने लगे तो बहुत सारी अमानवीय,समाज-विरोधी और नृशंस चीज़ें हमें स्वीकारनी होंगी? वैसे भी ये परंपरा बनाने वाले कौन थे? ब्राम्हण और ऊँची जातियाँ और उसमें भी सबके सब मर्द। क्या इन्होंने अपने हितों को ध्यान में रखकर ही परंपराएं नहीं बनाई होंगी
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1 comment:

  1. Anonymous said...
    Dear Truefeelings, you wrote "A journalist certainly comes from a caste and community but the moment he holds pen his hand to discharge his duties as a journalist and serve the society he ceases to be a member of a particular caste and community especially when he is discharging his journalistic duties"......
    If you feel so what is your problem with the Brahmin journalists gathering. They belong to a particular caste and they gathered as the community members. At this gathering, they were not planting stories, they were not discussing story writing, they were not doing journalism, they were not in any newspaper office, they were not carrying out their professional duties but they simply gathered and talked about the welfare of their community in their personal capacities.....

    September 13, 2009 6:52 AM

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